शरीर में 375 लाख से भी ज़्यादा कोशिकाएं होती हैं, जो विभिन्न कामों के जिए ज़िम्मेदार होती हैं. शरीर को ज़िंदा रखने के लिए ज़रूरी आधारभूत संरचना इन्हीं कोशिकाओं से मिलती है. उक्त कोशिकाएं शरीर के हर कार्य को नियंत्रित करती हैं और अलग-अलग हालात में बने रहने के क़ाबिल बनाती हैं. शरीर निर्माण में इनका सबसे महत्वपूर्ण कार्य मरम्मत और संरक्षण है. उन्हें इसके लिए ऊर्जा भोजन में मौजूद पोषक तत्वों से मिलती है. जब शरीर में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है तो कोशिकाएं अपना काम नहीं कर पाती हैं. कोशिकाओं के लिए ऊर्जा की उपलब्धता शरीर द्वारा पोषक तत्वों से ग्लूकोज पैदा करने की क्षमता पर निर्भर करती है. यह प्रक्रिया कोशिका स्तर पर होती है और इसमें शरीर के श्वसन तंत्र, पाचन तंत्र और अंत: स्त्रावी तंत्र प्रमुख भूमिका निभाते हैं. थकावट और अपौष्टिक भोजन से शरीर को ऊर्जा की यह मात्रा उपलब्ध नहीं हो पाती. हमारी जीवनशैली में लगातार और तेज़ी से परिवर्तन हो रहे हैं, लेकिन शरीर इस चुनौती से निपटने के लिए इतनी जल्दी तैयार नहीं होता. नतीजा यह कि इसके कुछ अंगों पर दबाव बढ़ जाता है और उनके सामान्य क्रियाकलापों पर बुरा असर पड़ता है. हरी, करी एंड वरी (जल्दबाजी, अपौष्टिक भोजन और चिंता) के चलते शरीर की मूलभूत उपापचय प्रक्रिया धीमी हो जाती है. मरम्मत और संरक्षण के अलावा ज़रूरी हॉर्मोनों के उत्सर्जन के लिए भी इसे समय नहीं मिल पाता. शारीरिक असंतुलन के इन्हीं लक्षणों को पश्चिमी देशों में बीमारी की संज्ञा दी जाती है. लेकिन ख़ुद हमारा शरीर इन लक्षणों को बीमारी नहीं मानता. यह इसे एक संक्रमण काल के रूप में देखता है, जिसके दौरान वह नई चुनौतियों से निपटने के लिए लगातार संघर्ष करता रहता है. दूसरी ओर उक्त लक्षण इस बात का संकेत हैं कि हमें जीवनशैली में आने वाले बदलावों की गति धीमी कर देनी चाहिए. हम इन बदलावों के कारणों को समझें और उन्हें जीवनशैली से दूर करें. बदलाव का सबसे बड़ा कारण भी यही है कि शरीर में ऊर्जा की ज़्यादा से ज़्यादा बचत हो सके. शरीर की कोशिकाओं को जब उसकी ज़रूरतों के लिए ज़रूरी ग्लूकोज उपलब्ध नहीं होता तो वह मदद की गुहार लगाता है. ज़्यादा भूख लगना, कमज़ोरी का अहसास, मीठा खाने की इच्छा आदि इसी के संकेत हैं. ऐसी हालत में चॉकलेट जैसी चीज़ें खाने से शरीर में शुगर की मात्रा अचानक बढ़ जाती है, जिससे पेशाब में जलन, प्यास लगना, ज़्यादा गुस्सा आना आदि समस्याएं पैदा होती हैं. यह सब एक सामान्य इंसान के साथ होता है, जो डायबिटीज का शिकार नहीं होता. यह शरीर के स्व-नियंत्रण का एक तरीक़ा है. जब शरीर में जंक फूड की मात्रा बढ़ जाती है तो मदद की यह गुहार और भी स्पष्ट हो जाती है. जो बताती है कि पौष्टिक पदार्थों की कमी के कारण टॉक्सिक तत्वों की मात्रा बढ़ गई है और उन्हें बाहर निकालना ज़रूरी है. सर्दी, खांसी, दर्द, स्किन एलर्जी आदि इसी के संकेत हैं, लेकिन इन्हें अक्सर छोटी-मोटी परेशानी समझ कर छोड़ दिया जाता है. यदि आप इन शुरुआती लक्षणों की अनदेखी करते हैं तो डायबिटीज के लिए तैयार रहें. उक्त समस्याएं धीरे-धीरे गंभीर रूप धारण करने लगती हैं. जैसे तलवे या उंगलियों में सुन्नपन का अहसास, पेशाब में जलन, ज़्यादा पेशाब आना, खुजलाहट आदि. बीमारी बढ़ने पर घावों के सूखने में देरी, गैंगरीन, नज़र की कमज़ोरी आदि समस्याएं गंभीर हो जाती हैं. उक्त समस्याएं बताना चाहती हैं कि कुछ गड़बड़ है. यदि आप इनसे निबटने के लिए दवाओं का सहारा लेते हैं, तो यह बीमारी के मूल कारणों से निपटने का सही तरीक़ा नहीं है. डायबिटीज के मूल कारणों से निबटने का सही तरीक़ा क्या है? शरीर की सबसे मूलभूत ज़रूरत पौष्टिक तत्व हैं, जो ऊर्जा का स्रोत हैं. हम जो कुछ भी खाते हैं, वह शरीर के अंदर सबसे पहले ग्लूकोज में परिवर्तित होता है और फिर शरीर की ज़रूरतों के मुताबिक़ इस ग्लूकोज को विटामिन, एमिनो एसिड, फैटी एसिड, वसा आदि में तोड़ा जाता है. शरीर के अंदर यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती है. इस चुनौती से निबटने में तीन बाधाएं हो सकती हैं, जैसे ग़लत भोजन के चलते शरीर में टॉक्सिक तत्वों की ज़्यादा मात्रा, भोजन को पचाने के लिए शरीर द्वारा लगाया गया ज़्यादा समय और ग़लत जीवनशैली के चलते पैदा हुई थकान. इनकी वजह से शरीर में शुगर की मात्रा में कमी या बढ़ोतरी होती है, जिससे इसका सामान्य कार्यकलाप असंतुलित हो जाता है. पाचन कार्य में शरीर को ज़्यादा समय लगने का मतलब यह है कि ग्लूकोज की ज़रूरी मात्रा उपलब्ध नहीं है. यदि इस मौक़े पर शुगर टेस्ट कराया जाए तो उसकी मात्रा कम आएगी. लेकिन हम जैसे ही कुछ खाते हैं तो शुगर का स्तर फिर बढ़ जाएगा. हम जब लगातार अपौष्टिक भोजन करते हैं तो इसे पचाने में शरीर को बार-बार ज़्यादा व़क्त लगता है. परिणामस्वरूप शुगर का स्तर कभी स्थिर नहीं हो पाता. पाचन तंत्र पर ज़्यादा दबाव के अलावा शरीर टॉक्सिक तत्वों को पचा नहीं पाता. रोटी, चावल, दूध, घी या ज़्यादा वसा वाली चीज़ों के खाने से शरीर में ग्लूटेन या म्यूकोअस की मात्रा ज़्यादा हो जाती है, जिसे आसानी से बाहर नहीं निकाला जा सकता. टॉक्सिक तत्व कोशिका की दीवारों और उसमें लगे संवेदकों को जाम कर देते हैं. संवेदक ही मस्तिष्क तक कोशिकाओं के लिए ग्लूकोज की ज़रूरी मात्रा की जानकारी पहुंचाते हैं. इनके काम न करने से मस्तिष्क तक यह संवाद नहीं पहुंचता और टॉक्सिन के चलते जाम पड़ी कोशिका की दीवारों से होकर ग्लूकोज भी अंदर नहीं पहुंच पाता. यह वैसी ही स्थिति है, जैसे आप किसी जाम पड़ी छन्नी पर चाय डाल रहे हों. थकान के कारण बढ़ा शुगर का स्तर ज़्यादा ख़तरनाक नहीं होता, क्योंकि यह शरीर के सामान्य क्रियाकलाप का एक अंग है. शरीर में शुगर के स्तर का सीधा संबंध मस्तिष्क के इस्तेमाल से है. थकान का मतलब है कि मस्तिष्क की कोशिकाओं को ज़्यादा मेहनत करनी पड़ी है और इसके लिए उन्हें ऊर्जा की भी ज़्यादा ज़रूरत होगी. शरीर उसी अनुपात में ख़ून में ग्लूकोज के स्तर को बढ़ा देता है. यदि ऐसी हालत लगातार बनी रहती है तो शरीर को भी ग्लूकोज का स्तर ऊंचा बनाए रखना पड़ता है. तब चिंता का विषय यह नहीं होता कि शुगर के स्तर को कम कैसे किया जाए, बल्कि यह कि थकान को कैसे कम किया जाए. यदि किसी थकेहुए इंसान का टेस्ट किया जाए तो यह तय है कि उसके ख़ून में शुगर की मात्रा ज़्यादा होगी. लेकिन थकावट कम होते ही शुगर का स्तर स्थिर हो जाता है. गेहूं, दूध से बनी चीजें या जंकफूड खाकर हम अपने शरीर की कोशिकाओं की दीवारों को ख़ुद जाम करते हैं, जिससे पाचन में ज़्यादा समय लगता है. यह शुगर का स्तर बढ़ने का सबसे बड़ा कारण है. पश्चिमी देशों में इलाज का क्या तरीक़ा है? पश्चिमी देशों में डायबिटीज के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली दवाइयां बीमारी की जड़ पर चोट नहीं करती हैं. संभव है कि ब्लड रिपोर्ट में सब कुछ सही दिखे, लेकिन कोशिका के अंदर शुगर की ज़्यादा मात्रा से पड़ने वाले असर के आकलन के लिए कोई टेस्ट नहीं है. हमारा लक्ष्य यह सुनिश्चित करना होता है कि शरीर की कोशिकाओं या ख़ून को शुगर की ज़्यादा मात्रा न मिले. जब शरीर पेशाब के रास्ते ग़ैर ज़रूरी शुगर बाहर निकालने की कोशिश करता है तो दवाइयों द्वारा उसके इस प्रयास को दबा दिया जाता है. एक बार डायबिटीज हो जाए तो आप हमेशा के लिए इसके शिकार होकर रह जाते हैं. यदि आप नियमित रूप से ज़्यादा कार्बोहाइड्रेट वाली चीजें खा रहे हैं जैसे रोटी, चावल, पास्ता आदि तो शरीर में शुगर की ज़्यादा मात्रा पैदा होती है, जो मैटाबॉलिक प्रॉसेस का हिस्सा नहीं बनती. वह सीधे ख़ून में मिल जाती है. शुगर के स्तर में इस उछाल से शरीर परेशान हो जाता है. ऐसे में कार्बोहाइड्रेट्स का ग्लाइसेमिक इंडेक्स ऊंचा हो जाता है, जिससे शुगर के स्तर में अचानक वृद्धि हो जाती है. ऐसी चीज़ें ज़्यादा खानी चाहिए, जिनका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम हो, जो धीरे-धीरे शरीर में घुलकर ग्लूकोज में परिवर्तित हो जाती हैं. उदाहरण के लिए ताज़ी सब्जियों या दालों से निकलने वाला शुगर ख़ून में धीरे-धीरे मिलता है. ऐसी चीज़ें खाने के दोहरे ़फायदे हैं. एक तो वे शरीर में आसानी से घुल जाती हैं और दूसरे यह कि इनके पचने में ज़्यादा समय नहीं लगता. डायबिटीज के मरीज को खाने में ज़्यादा समय लेकर पचने वाली कार्बोहाइड्रेट नियमित रूप से दी जाती हैं. परिणाम यह होता है कि उसके शुगर का स्तर लगातार बढ़ता जाता है. छह महीने तक नियमित एक्सरसाइज और यही भोजन करने के बाद भी जब उसके शरीर में शुगर का स्तर कम नहीं होता तथा दवा की मात्रा बढ़ा दी जाती है तो उसे आश्चर्य होता है. ऐसे लोगों का क्या अनुभव रहा है, जिन्होंने स्वास्थ्य के प्रति इस नज़रिए को अपनाया और जीवनशैली में इसके अनुरूप बदलाव किए? कई ऐसे उदाहरण हैं, जिनमें मरीज डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर की शिक़ायत लेकर आए. हमारी सलाह के मुताबिक़ तीन महीने तक केवल फल और सब्जियां खाने के बाद उनकी हालत में आश्चर्यजनक सुधार हुआ. शरीर को ऐसा भोजन पचाने में ज़्यादा व़क्त नहीं लगता और वह मरम्मत और पुनर्निर्माण जैसे काम कर सकता है. कई लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें अब दवा भी नहीं लेनी पड़ती. जीवनशैली में बदलाव, नियमित एक्सरसाइज और योग की मदद से उनका शरीर अब इसके लिए तैयार हो रहा है कि वे दोबारा इस बीमारी के शिकार न हों. पिछले 15 सालों से डायबिटीज के मरीजों के साथ रहते हुए हमने एक नई चीज देखी है. पहले लोग एक्सरसाइज और भोजन में बदलाव की मदद से इस बीमारी को ख़ुद नियंत्रित करने में सफल रहते थे. कम ही लोगों को इंसुलिन की ज़रूरत पड़ती थी, लेकिन अब लोग बीमारी का पता चलने के दो साल के अंदर ही इंसुलिन लेने लगे हैं. भविष्य के लिहाज़ से यह अग्नाशय के लिए ख़तरनाक हो सकता है. यह इस बात की ओर इशारा है कि तेज़ी से बदलती जीवनशैली, भोजन के स्वरूप और दवाओं के इस्तेमाल से शरीर की आंतरिक प्रतिरोधी क्षमता लगातार कम होती जा रही है. स्वस्थ रहने के लिए आदर्श डाइटद हेल्थ अवेयरनेस सेंटर ऐसे पोषण की सलाह देता है, जिससे शरीर ख़ुद अपनी सफाई करने में सक्षम हो. खाने में यदि ताज़ा सलाद जैसी फाइबर चीज़ें शामिल हों तो पचने में ज़्यादा व़क्तनहीं लगता. ऐसा खाना शरीर में आसानी से घुल-मिल जाता है और पचने के बाद शुगर की अनावश्यक मात्रा भी पैदा नहीं होती. चावल और रोटी जैसे जटिल कार्बोहाइड्रेट को एक साथ कभी नहीं खाना चाहिए और दिन में एक बार ही खाना चाहिए. रात के खाने में दोनों में से एक भी न हो तो अच्छा है, ताकि शुगर की मात्रा कम बनी रहे. एक औसत इंसान के लिए नाश्ते में कम से कम पांच अलग-अलग ताजा फल, ताजा सलाद, पकी हुई सब्जियां, बिना नमक की अंकुरित चीजें शरीर की ऊर्जा ज़रूरतों के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण हैं. आसानी से पचने और शरीर में घुल जाने वाली इन चीजों में मौजूद पोषक तत्व स्मॉल इंटेस्टाइन में जमा रहता है और शरीर की ज़रूरत के हिसाब से उसका इस्तेमाल होता है. यदि आप इन चीज़ों की पर्याप्त मात्रा नियमित रूप से सही समय पर खाते हैं तो शरीर में पोषक तत्वों का भंडार लगातार बढ़ता और स्वास्थ्य सुरक्षित रहता है. यदि कभी मजबूरी में दूसरी चीज़ें खानी पड़ें तो किसी भी हालत में ज़्यादा न खाएं. शरीर पर इसके असर को लाइम शॉट्स अर्थात पानी और लेमन जूस की मदद से कम किया जा सकता है. दूध, रिफाइंड आटा, तेल, चीनी, चाय, कॉफी जैसी चीज़ों से बिल्कुल दूर रहें, क्योंकि इनसे शरीर में एसिडिक और टॉक्सिक तत्वों की मात्रा बढ़ती है. फलों पर कोई रोक नहीं है. फलों में मौजूद शुगर में फ्रूक्टोज पाया जाता है, जो रिफाइंड शुगर में मौजूद सुक्रोज से अलग होता है. सुक्रोज की तरह फ्रूक्टोज सीधे ख़ून में नहीं मिलता, बल्कि मैटाबॉलिक प्रॉसेस का एक हिस्सा बनता है. शुगर को ग्लूकोज में परिवर्तित करने के लिए इंसुलिन की ज़रूरत होती है, लेकिन फ्रूक्टोज को ग्लूकोज में बदलने के लिए इंसुलिन ज़रूरी नहीं है. इससे अग्नाशय पर पड़ने वाले दबाव में कमी आती है. डायबिटीज के प्रत्येक मरीज की भोजन संबंधी ज़रूरतें अलग-अलग होती हैं और इसका ध्यान रखना ज़रूरी है. |
� Click the Topics below to see what's Hot & Favourite at www.dilsedesi.org
Topic Titles
Meet Roxxxy, the sex robot!! THE ULTIMATE COMPANION?
SHOCKING, AMAZING AND A VERY RARE PIC OF MALLIKA SHERAWAT
10 THINGS WOMEN HATE ABOUT MEN
All about breast cancer : A Ray of Hope
Tips For Cutting Down on Sugar
How to fight alcohol addiction
"THE WHY'S OF MEN" ( Careful~ naughty joke )
Aiyesha Takia : Wallpapers not seen before
Nandana Sen * Beauty at its Best :)
WOMB FOR RENT : Surrogacy gives birth to NEW HOPE
Anne Geddes Cute babies Wallpapers (5)
Miss Kolkata Priyanka Trivedi Tamil Actress The H2O Girl
B e a u t i f u l ~ P a i n t i n g s
~ ~ ~ ~[ MOST BEAUTIFUL MERMAIDS ]~ ~ ~ ~
Paul Anka - Papa(One of mine all time Fav. songs...Rajesh Kainth)
Imagine- By john Lennon from Beatles
Pretty Indian female dresses ( 102 Dresses )
***DIL SE DESI GROUP***
You can join the group by clicking the below link or by copying and pasting it in the browser bar and then pressing 'Enter'.
http://groups.yahoo.com/group/dilsedesigroup/join/
OWNER : rajeshkainth003@gmail.com (Rajesh Kainth}
MODERATOR : sunil_ki_mail-dilsedesi@yahoo.co.in (Sunil Sharma)
MODERATOR : dollyricky@gmail.com (Dolly Shah)
MODERATOR : boyforindia@gmail.com (Mr. Gupta)
To modify your list subscription, please send a blank email to:
SUBSCRIBE : dilsedesigroup-subscribe@yahoogroups.com
UNSUBSCRIBE : dilsedesigroup-unsubscribe@yahoogroups.com
INDIVIDUAL MAILS : dilsedesigroup-normal@yahoogroups.com
DAILY DIGEST : dilsedesigroup-digest@yahoogroups.com
VACATION HOLD : dilsedesigroup-nomail@yahoogroups.com
FOR POSTING MESSAGES : dilsedesigroup@yahoogroups.com
No comments:
Post a Comment